Why only talk about stopping pollution?

Editorial: प्रदूषण रोकने के लिए बातें ही क्यों, सच में उठने चाहिए कदम  

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Why only talk about stopping pollution?

आखिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा कि हमारी हवा स्वच्छ हो और हम अपनी अगली पीढ़ी को एक स्वस्थ जीवन का उपहार सौंप सकें। जैसे हालात नजर आते हैं, उनमें प्रति वर्ष न केवल हमारा पर्यावरण अपितु हवा की शुद्धता कम हो रही है। यह तब है, जब सर्वोच्च न्यायालय तक राज्य सरकारों को अपने यहां वायु प्रदूषण के कारकों की रोकथाम के लिए कह चुका है। दीप पर्व अब गुजर गया है, लेकिन इस दिन जितना प्रदूषण हुआ है, वह अपने आप में रिकार्ड बना गया।

चंडीगढ़ और आसपास के शहरों में तो इतना प्रदूषण हुआ है कि उससे पांच साल का रिकार्ड टूट गया। बताया गया है कि ट्राईसिटी में लगभग 50 करोड़ रुपये के पटाखे ही फोड़ दिए गए। कहा जाता है कि पटाखों से प्रदूषण नहीं होता लेकिन अगर इतनी बड़ी रकम के पटाखे एक रात में ही फोड़ दिए गए तो इनसे कितना प्रदूषण हुआ होगा। यह भी साबित तथ्य है कि रविवार की रात शहर में एक्यूआई 453 पहुंच गया था, बेशक इसमें अगले दिन कुछ सुधार हुआ।

अगर राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां रविवार की शाम चार बजे तक एक्यूआई 218 था जोकि सोमवार शाम तक 358 पर पहुंच गया। राजधानी के 15 से ज्यादा इलाकों का एक्यूआई 300 से ऊपर ही रहा। हरियाणा के 12 शहरों में एक्यूआई 300 से 400 के बीच रहा। हालात ऐसे थे कि 11 नवंबर को एक भी शहर में एक्यूआई 300 से ऊपर नहीं था। मौसम विज्ञानियों के अनुसार हवा का यह स्तर बेहद खराब है। ऐसी भी रिपोर्ट है कि हरियाणा में प्रदूषण 126 प्रतिशत तक बढ़ गया।

वास्तव में सामान्य तौर पर हवा सभी को साफ ही महसूस होती है, लेकिन विज्ञानियों की नजर से हवा में तमाम तरह के अव्यय शामिल हो रहे हैं, जोकि शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बताया गया है कि पटाखों ने देश के 52 शहरों की हवा को बेहद खराब जिसे दम घोंटू कहा जा सकता है, की स्थिति में ला दिया। इसके बाद धनतेरस से पहले हुई बारिश से हवा की गुणवत्ता में 50 फीसदी से ज्यादा सुधार आया। लेकिन यह सुधार जल्द ही खत्म हो गया क्योंकि दिवाली की रात पटाखों के फोड़ने  से जो प्रदूषण हुआ उसने त्राहिमाम जैसी स्थिति पैदा कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखे फोड़ने पर रोक लगाई थी, लेकिन न सरकारें कुछ कर पाई और न ही उनका पुलिस प्रशासन। किसी शहर में, किसी गांव-देहात में कहीं भी इसका पालन नहीं किया गया कि पटाखों को सीमित स्तर पर फोड़ा जाए।

गौरतलब है कि पिछले दिनों पराली जलाने की वजह से प्रदूषण की समस्या चर्चा में थी। माननीय सर्वोच्च अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा की सरकारों को कुछ भी करके पराली जलाने पर रोक लगाने को कहा था। अभी इस संबंध में रिपोर्ट आ रही हैं कि तमाम प्रबंधों के बावजूद पराली को आग लगाना जारी है। लेकिन अब दिवाली पर पटाखों के शोरगुल में पराली जलाने की सूचनाएं दब गई हैं। पंजाब में पराली जलने के मामलों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने पंजाब के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी थी। राज्य सरकार की ओर से पराली के प्रबंधन के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं, लेकिन किसानों की मनमर्जी बंद नहीं हो रही।

वास्तव में यह कहना उचित है कि प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली का जलना ही जिम्मेदार नहीं है। यह भी सच है कि मानसून के बाद खनन कार्य में तेजी आई है, वहीं निर्माण के सेक्टर में भी तेजी देखने को मिलती है।  इससे हवा में धूल के कणों की संख्या बढ़ जाती है, साथ ही हवा की गति इन दिनों धीमी हो जाती है। इससे आसमान में धूल, धुएं के गुब्बार बन जाते हैं, जोकि समस्या की मुख्य वजह हैं।

प्रश्न यह है कि आखिर इतनी रोकथाम के बावजूद ऐसा कैसे हो जाता है। चंडीगढ़ को सिटी ब्यूटीफुल कहा जाता है, लेकिन दीपावली के बाद इसके सेक्टरों के हालात देखकर किसी का भी सिर चकरा सकता है, क्योंकि फोड़े गए पटाखों के अवशेष से हर तरफ कचरा होता है और गंदगी के अंबार नजर आते हैं। प्रशासन की ओर से यहां इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन प्रशासन इसके लिए मूलभूत संसाधन ही विकसित नहीं कर पा रहा है। अब यहां जेनरेटर सेट और निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की चर्चा जारी है। चंडीगढ़ में रोजाना हजारों की तादाद में वाहन आते-जाते हैं। यह भी प्रदूषण को बढ़ाने में अहम भूमिका अदा कर रहा है, लेकिन इसका कोई उपाय नहीं है। यह जरूरी है कि प्रदूषण रोकने की कवायद फाइलों से बाहर आकर जन अभियान बनाई जाए। पराली का धुआं शायद ही इतना जहरीला हो, जितना की फैक्ट्रियों का धुआं। आखिर प्रदूषण के रोकथाम की बात सिर्फ चर्चा में ही क्यों होती है, हकीकत में इसकी रोकथाम का समाधान कब और कैसे होगा?

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